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Mahadev ki khaani : शिवपुराण भगवान शिव को मानने वालों के लिए तो बेहद प्रिय है ही उसके साथ साथ सभी के लिए उपादेय है। इसमें भगवान शिव के परात्पर परमब्रह्म रूप का भी महत्वपूर्ण वर्णन है। हरेक शिव भक्त को शिव पुराण (shiv puran) जरूर पढ़नी चाहिए।

शिव पुराण किसने लिखी।

महर्षि वेद व्यास ने शिव पुराण लिखी थी और इसमें ही भगवान शिव ( mahadev ), भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा के बीच अभिन्नता का वर्णन हुआ है। आज हम आपको एक कहानी के जरिये बताएंगें तीनों में क्यों कोई अंतर नही है।

शिव पुराण के अनुसार भगवान विष्णु और भगवान शिव में नही है कोई अंतर(mahadev ki kahani )

भगवान् विष्णु तो सर्वथा एक हैं ही। लीलामात्रके लिये कहीं भगवान् विष्णु उपास्य होते है तो कही उपासक होते हैं। और भगवान विष्णु ये उपास्य और उपासक की लीला इसलिए करते है क्योंकि वे उपास्य और उपासक का मूल बतान और समझाना चाहते है। अगर आप वस्तुतः देखते है तो ‘हरि और हरमें कोई भेद नहीं है । बस उनके रूपका ही भेद होता है।भगवान विष्णु और भगवान शिव ( mahadev ) की अभिन्नता को दर्शाती एक बेहद ही सुंदर और रोचक कथा बृहद्धर्मपुराण के पूर्वखण्ड अध्याय 1 । 10 में है।

क्या है कथा

एक बार भगवान् विष्णु अपने वैकुण्ठलोक में निद्रा में थे तभी वे एक स्वप्न देखते हैं कि करोड़ों चन्द्रमाओं के उजाले से युक्त, त्रिशूल डमरु लिए, अणिमादि सिद्धियोंके द्वारा सुसेवित त्रिलोचन भगवान् शिव प्रेम तथा आंनद से उन्मत्त होकर भगवान विष्णु के सामने नृत्य कर रहे हैं। भगवान शिव ( mahadev ) को इस तरह नृत्य में खोया हुआ देखकर भगवान् नारायण खुशी से झूम उठते है और एकदम से उठकर अपनी शय्या पर बैठ जाते है और ध्यानमग्न हो जाते है।

क्योंकि उनके साथ उनकी भार्या यानी पत्नी माता लक्ष्मी भी मौजूद होती है।वे उन्हें यों विराजित देखकर उनसे पूछती है कि नारायण आप ऐसे अचानक से क्यों उठ गए और ध्यानमग्न हो गए, लेकिन उस वक़्त भगवान विष्णु कुछ बोले नही। कुछ समय बाद अपने ध्यान से बाहर आकर भगवान विष्णु कहते है –’देवि ! मैंने अभी अपने स्वप्नमें भगवान शिव ( mahadev ) के मनोहर रूप के दर्शन किये। वे आगे कहते है कि इससे प्रतीत होता है महादेव मुझे याद कर रहे है, इसलिए हमलोग को कैलास जाकर भगवान् शिव ( mahadev ) के दर्शन करने चाहिए ।”

इतना कहकर माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु कैलास भगवान शिव से मिलने चले जाते है। ज्यों की वे बैकुण्ठ धाम से कुछ ही दूरी पर पहुंचे होते है कि उन्हें उनजे सामने स्वयं भगवान शिव ( mahadev ) और माता पार्वती आतई दिखते है। उन्हें देख ऐसा लग रहा था कि मानो जो चाहा वो खुद घर आ गया हो। जब दोनों यानी कि भगवान शिव और विष्णु भगवान पास पहुंचे तो एक दूसरे को देखकर बेहद प्रशन्न हुए और बड़े ही प्रेम से एक दूसरे से मिले। दोनों के मिलने भर से ही प्रेम के आनंद का सागर उमड़ गया था। दोनों एक दूसरे को देखते ही एक दूसरे के गले से लिपट गए। लेकिन जब भगवान विष्णु ने भगवान शिव से यहां आने के बारे में पूछा तो जो बात पता चली वो आश्चर्यजनक थी।

भगवान् शिव ने बताया कि बीती रात उन्हें भी एक स्वप्न आया था। जिसमें उन्हौने भगवान विष्णु को ठीक उसी रूप में ( जैसे भगवान विष्णु ने भगवान शिव ( mahadev ) को देख था) देखा और वे भी नृत्य कर रहे थे। आपको सपनो में देखकर मुझे प्रतीत हुआ कि नारायण ने मुझे याद किया है। इसलिए में देवी पार्वती के साथ बैकुण्ठ की ओर आ गया। इसके बाद दोनों एक दूसरे से उनके निवास स्थान चलने का आग्रह करते है। भगवान शंकर नारायण से कैलास चलने को कहते है तो नारायण भगवान शिव से बैकुण्ठ धाम चलने को कहते है। लोगों दोनों में एक समानता थी वो था दोनों का अलौकिक प्रेम। और यही कारण था कि दोनों कुछ भी निर्णय नही कर पा रहे थे।

नारद मुनि भी पधारे

भगवान शिव ( mahadev ) और भगवान विष्णु को तरह स्नेह से परिपूर्ण देख नारद मुनि भी वीना बजातर हुए वहां पहुंच गए। जब दोनों ने नारद ऋषि को देखा को दोनों बोले कि नारद मुनि आप ही इस निर्णय करें कि किसेखन जाना चाहे। अब नारद तो दोनों के भक्त वे कैसे फैसला करते तो वे दोनों की प्रशंसा करने लगे और उनके अलौकिक प्रेम का दर्शन कर मंत्रमुग्ध हो गए। अब संकट ये था कि फैसला करे कौन। तभी महादेव और भगवान विष्णु की नजर माता पार्वती पर पड़ती है।वे उनसे आग्रह करते है कि वे ही बताएं उन्हें कहां जाना चाहिए।

कैसे किया माता पार्वती ने समाधान

माता पार्वती दोनों की बात सुनकर कुछ देर के लिए शांत हो जाती है और उसके बाद कहती है कि , “हैं नाथ और हे केशव आप दोनों के इस प्रेम को देखकर ये पता चलता है की आप दोनों के शरीर अलग अलग है, लेकिन आपकी आत्मा और आपके रहनके के साथ बैकुण्ठ और कैलास भी एक ही है बस दोनों के नाम अलग अलग है। यहां तक कि मेरे अनुसार आपकी पत्नियां भी एक ही है। वो कहती है की में (पार्वती) हु वो ही देवी लक्ष्मी भी है और जो देवी लक्ष्मी है वो ही में भी हूं।

आगे माता पार्वती कहती है कि आप में एक कि पूजा करने वाला दूसरे की भी लूज करता है और जो एक के प्रति दुर्भावना रखता है वो दूसरे के प्रति भी।इतना ही नही जिसे आपमें से एकने अपूज्य मां लिया वो दूसरे के लिए भी अपूज्य हो जाता है। माता पार्वती ये भी कहती है कि दो भगवान विष्णु और महादेव में अंतर मानता है वो व्यक्ति पतन की ओर बढ़ता है और उसका पतन होना तय होता है। इसलिए आप दोनों से निवेदन है कि आप दोनों की अपने अपने निवास स्थानों की ओर प्रस्थान करें बस महादेव ये मान लें की कैलास ही बैकुण्ठ है भगवान विष्णु ये मान लें कि बैकुण्ठ ही कैलास है। माता पार्वती की ये बात सुनकर दोनों ही खुश होते है और अपने अपने निवास स्थानों की ओर चले जाते है।

इस कहानी से ये सिद्ध होता है कि भगवान शिव ( mahadev ) और भगवान विष्णु अलग अलग नही बल्कि एक ही है।

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