Demo

Devidhura mandir : देश भर में नवरात्रों की धूम है।सभी माता के भक्त माता की भक्ति में लीन है।वैसे तो देवी माँ के कई रूप है और भक्त उन्हें उनके हर रूप में पूजते है।कोई माँ को विद्यादायिनी सरस्वती के रूप में पूजता है तो कोई धन की देवी लक्ष्मी तो कोई उनके रौद्र रूप काली के रूप में पूजता है।मा के अलग अलग रूप है तो उन्हें पूजने और प्रशन्न करने की विधि भी अलग अलग है जिनमें कई विधियां आपको काफी विचित्र और रोमांचित करने वाली लगेंगी।ऐसी ही एक विधि है का उपयोग उत्तराखंड के चंपावत जिले में स्थित देवीधुरा मंदिर (Devidhura mandir) में होता है।देवीधुरा मंदिर मां बाराही के प्रशिद्ध मंदिरों में से एक है।कुमाउनी भाषा में धुरा को जंगल कहा जाता है तो देवीधुरा का अर्थ होता है देवी का जंगल।

हर साल यहां खेली जाती है बग्वाल (Bagwal in devidhura)

देवीधुरा (Devidhura mandir) में प्रतिवर्ष बग्वाल का आयोजन होता है। बग्वाल को पाषाण युद्ध यानी कि पत्थरों से होने वाला युद्ध भी कहा जाता है। हर साल रक्षाबंधन के दिन देवीधुरा में होने वाले इस पाषाण युद्ध को देखने के लिए देश ही नहीं विदेश से भी हजारों लोग यहां पहुंचते हैं बग्वाल वालिक,लमगड़िया,चम्याल, गहड़वाल खामों के बीच होती है।ये चारों खाम दो गुटों में बट जाते है और एक दूसरे पर जमकर पत्थर चलाते है।सामान्यतः बग्वाल 15 मिनट से लेकर 30 मिनट तक के लिए होती है।जिसमें दोनों गुटों के लोगों के साथ देखने आए श्रद्धालु भी घायल होते है।

ये भी पढ़ें- क्या भारत में शादीशुदा औरत के साथ संबंध बनाना जायज है,अगर आपका पार्टनर आपको धोखा दे रहा है तो आप क्या कर सकते है।

बग्वाल की कहानी क्या है ( story of bagwal in devidhura mandir ) .

अब बग्वाल की शुरुआत को लेकर भी कई रोचक कहानियां है।एक सबसे प्रचलित कहानी के अनुसार प्राचीन काल में मां बाराही के मंदिर में माता को खुश करने के लिए नर बलि दी जाती थी। इन चारों खामों में से हर साल एक व्यक्ति को चुना जाता था और उसे अपने प्राण माता के समक्ष निछावर करने होते हैं। अब साल दर साल यह प्रथा चलती रही ।ऐसा करते करते एक बार चम्याल खामे के सामने उनके वंश के खात्मे का संकट आ गया।

जिस वजह से चम्याल खामे की एक वृद्ध महिला ने अपने पोते की बलि देने से इंकार कर दिया वृद्ध महिला के मना करने के बाद अब गांव वालों में डर बैठ गया कि कहीं माता कुपित न हो जाए इसलिए गाँव वालों ने फैसला लिया कि वे देवीधुरा मंदिर (Devidhura mandir) में बग्वाल का आयोजन कराएंगे और बग्वाल में जैसे ही एक मनुष्य के शरीर जितना खून बह जाएगा तो बग्वाल समाप्त कर दी जाएगी। और तभी से नरबलि के विकल्प के रूप बग्वाल का आयोजन होता है।

बग्वाल के दौरान जिस वक्त रोमांचक युद्ध होता है उस दौरान देवीधुरा मंदिर (Devidhura mandir) का” पुजारी माता की पूजा अर्चना करता है और जब वो मैदान में शंखनाद कर देता है तो युद्ध समाप्त हो जाता है।बग्वाल को लेकर एक खास बात ये भी है कि इसमें जिनको भी चोट लगती है उन्हें इलाज की आवश्यक्ता नही पड़ती बल्कि इसे माता का आशीर्वाद समझा जाता है।कई लोग चोट पर मंदिर से ही भस्म का इस्तेमाल करते है और मान्यता है कि उसके इस्तेमाल से ही ये चोट ठीक हो जाती है।

ये भी पढ़ें : guru nanak jayanti 2021, gurupurab story in hindi : जानिए guru nanak की कहानी

बाराही देवी मंदिर के चमत्कार ( Devidhura mandir mystry )

दोस्तों देवीधुरा मंदिर (Devidhura mandir) जितना ही खूबसूरत है उतना ही इसके चमत्कारों पर भी चर्चा होती है कई ऐसे रहस्य हैं जो मंदिर के बारे में अभी भी अनसुलझे हैं इसलिए आज हम आपको कुछ ऐसे ही रहस्यों के बारे में बताने जा रहे अगर आप में से कोई भी भक्तगण किसी मंदिर में जाता है उसकी क्या अभिलाषा होती है उसकी अभिलाषा होती है कि वह मंदिर में भगवान के दर्शन करें वह उस आराध्य के दर्शन करें जिससे मिलने के लिए जिसकी शरण में जाने के लिए वह उस मंजिल तक गया है लेकिन देवीधुरा मंदिर एक ऐसा मंदिर है जहां देवी की स्थापित मूर्ति को नहीं देख सकते।

कहा जाता है कि देवीधुरा मंदिर (Devidhura mandir) में जिसने भी माता की मूर्ति को देखने की कोशिश की उसकी आंखों की रोशनी चली गई। इसके साथ ही मंदिर में मौजूद दो विशाल सिलाई भी आकर्षण का केंद्र है यह सिलाई ग्रेनाइट की बनी हुई है कहां जाता है कि इन सेनाओं के पास ही पांडवों ने जुआ खेला था यहां एक शिला पर हाथों के निशान हैं जिन्हें स्थानीय लोग भीम के हाथ भी कहते हैं।

ये भी पढ़ें –raja harishchandra story in hindi : राजा हरिश्चंद्र के राजा से रंक बनने की कहानी

वाराही देवी मंदिर का इतिहास।

मां बाराही के इस देवीधुरा मंदिर (Devidhura mandir) का इतिहास भी बेहद प्राचीन है। हम सभी जो हिंदू धर्म में आस्था रखते हैं और थोड़ा भी हिंदू धर्म के बारे में जानते हैं उन्हें पता होता है कि भगवान विष्णु, पृथ्वी या इस सृष्टि के रक्षक हैं और उन्होंने पृथ्वी पर धर्म और पृथ्वी वासियों की रक्षा के लिए अलग-अलग अवतार लिए हैं। हिंदू पुराणों में भगवान विष्णु के 10 अवतारों का जिक्र है इसमें ही एक अवतार भगवान वाराह का भी है। कहा जाता है की अधर्मराज और हिरण्याक्ष पृथ्वी को पाताल लोक में ले जाते हैं, पृथ्वी पूरी जल मग्न हो चुकी होती है तो पृथ्वी की पुकार को सुनकर भगवान विष्णु वाराह का अवतार लेते हैं और पृथ्वी को ऊपर लाते हैं और पृथ्वी स्वरूप उन्हीं देवी को वाराही देवी (Devidhura mandir) कहा गया।

ये भी पढ़िए- जानिए rashtriya swayamsevak sangh का इतिहास

वीडियो :

लाइव अल्मोड़ा में हम आपको हिन्दू धर्म से लेकर भारतीय संस्कृति के बारे में रोचक जानकारियां देते है। अगर आप सभी को भी हिन्दू धर्म, भारतीय संस्कृति और समाज के बारे में जानते है या लिखते है तो हमें अपने लेख जरूर भेजें। हम आपके लेख को अपनी साइट में जरूर जगह देंगें।आप अपने लेख हमें हमारे ईमेल एड्रेस livealmora@gmail.com पर भेज सकते है. बांकी आपकी कोई राय है तो वो भी हमें भेजना न भूलें।

Share.
Leave A Reply