उत्तराखंड सरकार ने भूजल और प्राकृतिक जलस्रोतों के अत्यधिक दोहन को रोकने के लिए बड़ा कदम उठाया है। 1 दिसंबर से राज्य में भूजल और जलस्रोतों के व्यावसायिक उपयोग पर टैक्स लगाया जाएगा। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में इस फैसले को मंजूरी दी गई। इसके साथ ही जल मूल्य की नई दरें भी तय की गई हैं।

जलस्रोतों और भूजल के व्यावसायिक उपयोग पर टैक्स की शुरुआत

इस नई व्यवस्था के तहत कृषि और राजकीय पेयजल योजनाओं को छोड़कर अन्य व्यावसायिक उपयोग जैसे उद्योग, होटल, वाटर पार्क, रेजिडेंशियल अपार्टमेंट, वाहन धुलाई सेंटर आदि से पानी के उपयोग पर जल मूल्य वसूला जाएगा। इससे राज्य सरकार को अतिरिक्त राजस्व प्राप्त होगा और जलस्रोतों के अनियंत्रित दोहन पर भी रोक लगेगी।

आईटीबीपी को स्थानीय मांस आपूर्ति का निर्णय

कैबिनेट ने एक अन्य महत्वपूर्ण निर्णय में चमोली, उत्तरकाशी और पिथौरागढ़ में स्थित आईटीबीपी बटालियनों को मांस की आपूर्ति स्थानीय निवासियों से कराने के प्रस्ताव को मंजूरी दी। इस योजना के तहत स्थानीय लोगों की सहकारी समितियां गठित की जाएंगी, जो भेड़-बकरी, कुक्कुट और मछली की आपूर्ति करेंगी। इसके लिए पांच करोड़ रुपये का रिवॉल्विंग फंड भी मंजूर किया गया है, ताकि पालकों को तुरंत भुगतान हो सके। इस योजना से लगभग 11,190 लोगों को लाभ मिलेगा।

मलिन बस्तियों के पुनर्वासन का निर्णय

राज्य की नगरीय मलिन बस्तियों के सुधार, पुनर्वास और पुनर्व्यवस्थापन के मुद्दे पर भी कैबिनेट ने महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। नगर निकायों एवं प्राधिकरणों के लिए लागू विशेष प्रविधान अधिनियम की अवधि को तीन साल तक बढ़ाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई, जिससे इन बस्तियों के निवासियों को राहत मिल सकेगी।

वन्यजीव संघर्ष में राहत और मुआवजे का प्रावधान

कैबिनेट ने मानव-वन्यजीव संघर्ष से प्रभावित लोगों को मुआवजा और चिकित्सा सहायता प्रदान करने के लिए नए संशोधित नियम लागू किए हैं। अब वन्यजीवों के हमले में घायल होने पर प्रभावित व्यक्ति को आर्थिक सहायता के साथ अटल आयुष्मान योजना के तहत चिकित्सा सुविधा भी मिलेगी। इसके अलावा, मवेशियों पर वन्यजीवों के हमले के बाद मुआवजे की प्रक्रिया को भी सरल बनाया गया है।

भविष्य के लिए प्रभावी कदम

उत्तराखंड सरकार का यह निर्णय राज्य के प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और स्थानीय निवासियों की आजीविका के लिए एक बड़ा कदम माना जा रहा है। इससे न केवल जलस्रोतों का संरक्षण होगा, बल्कि सीमांत क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को आर्थिक रूप से भी मदद मिलेगी।

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