Surya dev story : हिन्दू धर्म में कई देवी देवता है ,हर देवी देवता है।हर देवी देवता के जन्म से लेकर उनके महत्व तक कि अलग अलग कहानियां है।इन देवताओं में सूर्य देव भी शामिल है। सूर्य देव ऐसे देवताओं में से है जिनके साक्षात दर्शन हर कोई कर सकता है।आज हम आपको सूर्य देव ( Surya dev) के पृथ्वी पर जन्म की कहानी बताएंगें।
सूर्य देव के जन्म की कहानी ( Surya dev story in hindi )
मार्कण्डेयजी कहते हैं-मुने। इस जगत्की सृष्टि करके ब्रह्माजीने पूर्वकल्पोंके अनुसार वर्ण, आश्रम, समुद्र, पर्वत और द्वीपोंका विभाग किया। देवता, दैत्य तथा सर्प आदिके रूप और स्थान भी पहलेकी ही भाँति बनाये। ब्रह्माजीके मरीचि नामसे विख्यात जो पुत्र थे, उनके पुत्र कश्यप हुए। उनकी तेरह पत्नियाँ हुईं, वे सब-की-सब प्रजापति दक्षकी कन्याएँ थीं। उनसे देवता, दैत्य और नाग आदि बहुत-से पुत्र उत्पन्न हुए। अदितिने त्रिभुवनके स्वामी देवताओंको जन्म दिया। दितिने दैत्योंको तथा दनुने महापराक्रमी एवं भयानक दानवोंको उत्पन्न किया। विनतासे गरुड और अरुण-दो पुत्र हुए। खसाके पुत्र यक्ष और राक्षस हुए। कद्रूने नागोंको और मुनिने गन्धर्वोंको जन्म दिया। क्रोधासे कुल्याएँ तथा | अरिष्टासे अप्सराएँ उत्पन्न हुई । इराने ऐरावत आदि हाथियोंको उत्पन्न किया।
ताम्राके गर्भसे श्येनी आदि कन्याएँ पैदा हुईं। उन्हींके पुत्र श्येन (बाज), भास और शुक आदि पक्षी हुए। इलासे वृक्ष तथा प्रधासे जलजन्तु उत्पन्न हुए। कश्यप मुनिके अदितिके गर्भसे जो सन्तानें हुईं, उनके पुत्र-पौत्र, दौहित्र तथा उनके भी पुत्रों आदिसे यह सारा संसार व्याप्त है। कश्यपके पुत्रोंमें देवता प्रधान हैं। इनमें कुछ तो सात्त्विक हैं, कुछ राजस हैं और कुछ तामस हैं। ब्रह्मवेत्ताओंमें श्रेष्ठ परमेष्ठी प्रजापति ब्रह्माजीने देवताओंको यज्ञभागका भोक्ता तथा त्रिभुवनका स्वामी बनाया; परन्तु उनके सौतेले भाई दैत्यों, दानवों और राक्षसोंने एक साथ | मिलकर उन्हें कष्ट पहुँचाना आरम्भ कर दिया। इस कारण एक हजार दिव्य वर्षोंतक उनमें बड़ा | भयङ्कर युद्ध हुआ। अन्तमें देवता पराजित हुए। और बलवान् दैत्यों तथा दानवोंको विजय प्राप्त हुई।
अपने पुत्रोंको दैत्यों और दानवोंके द्वारा पराजित एवं त्रिभुवनके राज्याधिकारसे वञ्चित तथा उनका यज्ञभाग छिन गया देख माता अदिति अत्यन्त शोकसे पीड़ित हो गयीं। उन्होंने भगवान् सूर्य ( Surya dev) की आराधनाके लिये महान् यत्न आरम्भ किया। वे नियमित आहार करती हुई कठोर नियमोंका पालन और आकाशमें स्थित तेजोराशि भगवान् सूर्य ( Surya dev) का स्तवन करने लगीं।
अदिति बोलीं- भगवन्! आप अत्यन्त सूक्ष्म सुनहरी आभासे युक्त दिव्य शरीर धारण करते हैं, आपको नमस्कार है। आप तेज: स्वरूप, तेजस्वियोंके ईश्वर, तेजके आधार एवं सनातन पुरुष हैं; आपको प्रणाम है। गोपते! आप जगत्का उपकार करनेके लिये जब अपनी किरणोंसे पृथ्वीका जल ग्रहण करते हैं, उस समय आपका जो तीव्र रूप प्रकट होता है, उसे मैं नमस्कार करती हूँ। आठ महीनोंतक सोममय रसको ग्रहण करनेके लिये आप जो अत्यन्त तीव्र रूप धारण करते हैं, उसे मैं — प्रणाम करती हूँ। भास्कर! उसी सम्पूर्ण रसको बरसानेके लिये जब आप छोड़नेको उद्यत होते हैं, उस समय आपका जो तृप्तिकारक मेघरूप प्रकट होता है, उसको मेरा नमस्कार है। इस प्रकार जलकी वर्षासे उत्पन्न हुए सब प्रकारके अन्नोंको पकानेके लिये आप जो भास्कर-रूप धारण करते हैं, उसे मैं प्रणाम करती हूँ। तरणे! जड़हन धानकी वृद्धिके लिये जो आप पाला गिराने आदिके कारण अत्यन्त शीतल रूप धारण करते हैं, उसको मेरा नमस्कार है।
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सूर्यदेव ( Surya dev) ! वसन्त ऋतुमें जो आपका सौम्य-रूप प्रकट होता है, जिसमें न अधिक गर्मी होती है न अधिक सर्दी, उसे मेरा बारंबार नमस्कार है। जो सम्पूर्ण देवताओं तथा पितरोंको तृप्त करनेवाला और अनाजको पकानेवाला है, आपके उस रूपको | च नमस्कार है। जो रूप लताओं और वृक्षोंका एकमात्र जीवनदाता तथा अमृतमय है, जिसे देवता और पितर पान करते हैं, आपके उस सोम-रूपको नमस्कार है। आपका यह विश्वमय स्वरूप ताप एवं तृप्ति प्रदान करनेवाले अग्नि और सोमके द्वारा व्याप्त है, आपको नमस्कार है। विभावसो! आपका जो रूप ऋक्, यजु और साममय तेजोंकी एकतासे इस विश्वको तपाता है तथा जो वेदत्रयीस्वरूप है, उसको मेरा नमस्कार है। तथा जो उससे भी उत्कृष्ट रूप है, जिसे ‘ॐ’ कहकर पुकारा जाता है, जो अस्थूल, अनन्त और निर्मल है, उस सदात्माको नमस्कार है।
इस प्रकार देवी अदिति नियमपूर्वक रहकर दिन-रात सूर्य देव ( Surya dev) की स्तुति करने लगीं। उनकी आराधनाकी इच्छासे वे प्रतिदिन निराहार ही रहती थीं। तदनन्तर बहुत समय व्यतीत होनेपर भगवान् सूर्य ( Surya dev) ने दक्षकन्या अदितिको आकाशमें प्रत्यक्ष दर्शन दिया। अदितिने देखा, आकाशसे पृथ्वीतक तेजका एक महान् पुञ्ज स्थित है। उद्दीप्त ज्वालाओंके कारण उसकी ओर देखना कठिन हो रहा है। उन्हें देखकर देवी अदितिको बड़ा भय हुआ।
वे बोलीं- गोपते! आप मुझपर प्रसन्न हों। मैं पहले आकाशमें आपको जिस प्रकार देखती थी, वैसे आज नहीं देख पाती। इस समय यहाँ भूतलपर केवल तेजका समुदाय दिखायी दे रहा है। दिवाकर ! मुझपर कृपा कीजिये, जिससे आपके रूपका दर्शन कर सकूँ। भक्तवत्सल प्रभो! मैं आपकी भक्त हूँ, आप मेरे पुत्रोंकी रक्षा कीजिये । आप ही ब्रह्मा होकर इस विश्वकी सृष्टि करते हैं, आप ही पालन करनेके लिये उद्यत होकर इसकी रक्षा करते हैं तथा अन्तमें यह सब कुछ आपमें ही लीन होता है। सम्पूर्ण लोकमें आपके सिवा दूसरी कोई गति नहीं है। आप ही ब्रह्मा, विष्णु, शिव, इन्द्र, कुबेर, यम, वरुण, वायु, चन्द्रमा, अग्नि, आकाश, पर्वत और समुद्र हैं। आपका तेज सबका आत्मा है। आपकी क्या स्तुति की जाय। यज्ञेश्वर! प्रतिदिन अपने | कर्ममें लगे हुए ब्राह्मण भाँति-भाँतिके पदौसे आपकी स्तुति करते हुए यजन करते हैं। जिन्होंने र अपने चित्तको वशमें कर लिया है, वे योगनिष्ठ पुरुष योगमार्गसे आपका ही ध्यान करते हुए। परमपदको प्राप्त होते हैं।
आप विश्वको ताप देते, | उसे पकाते, उसकी रक्षा करते और उसे भस्म कर = डालते हैं; फिर आप ही जलगर्भित शीतल किरणोंद्वारा इस विश्वको प्रकट करते और आनन्द देते हैं। कमलयोनि ब्रह्माके रूपमें आप ही सृष्टि करते हैं। अच्युत (विष्णु) नामसे आप ही पालन करते हैं तथा कल्पान्तमें रुद्र-रूप धारण करके आप ही सम्पूर्ण जगत्का संहार करते हैं।
मार्कण्डेयजी कहते हैं- तदनन्तर भगवान् सूर्य ( Surya dev) अपने उस तेजसे प्रकट हुए। उस समय वे तपाये हुए ताँबेके समान कान्तिमान् दिखायी देते थे। देवी अदिति उनका दर्शन करके चरणों में गिर पड़ीं। तब भगवान् सूर्य ( Surya dev) ने कहा–’देवि! तुम्हारी जो इच्छा हो, वह वर मुझसे माँग लो।’ तब देवी अदिति घुटनेके बलसे पृथ्वीपर बैठ गयीं और मस्तक नवाकर | प्रणाम करके वरदायक भगवान् सूर्य ( Surya dev) से बोलीं- ‘देव! | आप प्रसन्न हों। अधिक बलवान् दैत्यों और दानवोंने | मेरे पुत्रोंके हाथसे त्रिभुवनका राज्य और यज्ञभागके भोक्ता तथा त्रिभुवनके स्वामी हो जाएं।
तब भगवान् सूर्य ( Surya dev) ने अदितिसे प्रसन्न होकर कहा—’देवि! मैं अपने सहस्र अंशोंसहित तुम्हारे गर्भसे अवतीर्ण होकर तुम्हारे पुत्रके शत्रुओंका नाश करूँगा।’ इतना कहकर भगवान् सूर्य अन्तर्धान हो गये और अदिति भी सम्पूर्ण मनोरथ सिद्ध हो जानेके कारण तपस्यासे निवृत्त हो गयीं। तदनन्तर सूर्य ( Surya dev) की सुषुम्णा नामवाली किरण, जो सहस्र किरणोंका समुदाय थी, देवमाता अदितिके गर्भमें अवतीर्ण हुई। देवमाता अदिति एकाग्रचित्त हो कृच्छ्र और चान्द्रायण आदि व्रतोंका पालन करने लगीं और अत्यन्त पवित्रतापूर्वक उस गर्भको धारण किये रहीं, यह देख महर्षि कश्यपने कुछ कुपित होकर कहा- ‘तुम नित्य उपवास करके अपने गर्भके बच्चेको क्यों मारे डालती हो ?’ यह सुनकर उसने कहा- ‘देखिये, यह रहा गर्भका बच्चा; मैंने इसे मारा नहीं है, यह स्वयं ही अपने शत्रुओंको मारनेवाला होगा।’
यों कहकर देवी अदितिने उस गर्भको उदरसे बाहर कर दिया। वह अपने तेजसे प्रज्वलित हो रहा था। उदयकालीन सूर्यके समान तेजस्वी उस गर्भको देखकर कश्यपने प्रणाम किया और आदि ऋचाओंके द्वारा आदरपूर्वक उसकी स्तुति की। उनके स्तुति करनेपर शिशुरूपधारी सूर्य ( Surya dev) उस अण्डाकार गर्भसे प्रकट हो गये। उनके शरीरकी कान्ति कमलपत्रके समान श्याम थी। वे अपने तेजसे सम्पूर्ण दिशाओंका मुख उज्ज्वल कर रहे थे । तदनन्तर मुनिश्रेष्ठ कश्यपको सम्बोधित करके मेघके समान गम्भीर वाणीमें आकाशवाणी हुई “मुने! तुमने अदितिसे कहा था कि इस अण्डेको क्यों मार रही है उस समय तुमने ‘मारितम् अण्डम्’ का उच्चारण किया था, इसलिये तुम्हारा यह पुत्र ‘मार्तण्ड’ के नामसे विख्यात होगा और शक्तिशाली होकर सूर्यके अधिकारका पालन करेगा; इतना ही नहीं, यह यज्ञभागका अपहरण करनेवाले देवशत्रु असुरोंका संहार भी करेगा।’
यह आकाशवाणी सुनकर देवताओंको बड़ा हर्ष हुआ और दानव बलहीन हो गये; तब इन्द्रने दैत्योंको युद्धके लिये ललकारा। दानव भी उनका सामना करनेके लिये आ पहुँचे। फिर तो देवताओंका असुरोंके साथ घोर संग्राम हुआ। उनके अस्त्र शस्त्रोंकी चमकसे तीनों लोकोंमें प्रकाश छा गया। उस युद्धमें भगवान् सूर्यकी क्रूर दृष्टि पड़ने तथा उनके तेजसे दग्ध होनेके कारण सब असुर जलकर भस्म हो गये। अब तो देवताओंके हर्षकी सीमा न रही। उन्होंने तेजके उत्पत्तिस्थान भगवान् सूर्य और अदितिका स्तवन किया। उन्हें पूर्ववत् अपने अधिकार और यज्ञके भाग प्राप्त हो गये ! भगवान् सूर्य भी अपने अधिकारका पालन करने लगे। वे नीचे और ऊपर फैली हुई किरणों के कारण कदम्बपुष्पके समान सुशोभित हो रहे थे। उनका मण्डल गोलाकार अग्निपिण्डके समान है।
तदनन्तर भगवान् सूर्य ( Surya dev) को प्रसन्न करके प्रजापति विश्वकर्माने विनयपूर्वक अपनी संज्ञा नामकी कन्या उनको ब्याह दी। विवस्वान्से संज्ञाके गर्भसे वैवस्वत मनुका जन्म हुआ। वैवस्वत मनुकी विशेष कथा पहले ही बतलायी जा चुकी है।