उत्तराखंड में वन्यजीव संरक्षण के दावे एक बार फिर कटघरे में हैं। हरिद्वार–देहरादून रेलवे ट्रैक पर पिछले 38 वर्षों में 33 हाथियों की मौत ने सिस्टम की लापरवाही को साफ उजागर कर दिया है। हाल ही में हरिद्वार रेंज के खड़खड़ी बीट में ट्रेन की चपेट में आए एक गज शिशु की मौत ने वन्यजीव सुरक्षा व्यवस्थाओं पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
रेलवे और पार्क प्रशासन द्वारा वन्यजीव दुर्घटनाओं पर रोक लगाने के लिए कई बैठकों और योजनाओं का दावा किया जाता रहा है, लेकिन हकीकत यह है कि अधिकांश प्रयास कागजों तक सीमित रह गए। पार्क क्षेत्र से गुजरने वाली ट्रेनों की गति नियंत्रित रखने के आदेश भी समय के साथ नरम पड़ गए और कई एक्सप्रेस व वंदे भारत जैसी तेज रफ्तार ट्रेनें ट्रैक पर मानक से कहीं अधिक गति से दौड़ रही हैं। इससे स्पष्ट है कि दोनों विभागों के बीच तालमेल का गंभीर अभाव है, जिसकी कीमत वन्यजीवों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ रही है।
38 वर्षों का दर्दनाक आंकड़ा— सिस्टम की खामियों का आईना
पार्क गठन के बाद अब तक 33 हाथियों की मौत हो चुकी है। रेलवे और पार्क प्रशासन की संयुक्त बैठकें, स्पीड लिमिट लागू करने के आदेश और ट्रैक पेट्रोलिंग—सब केवल औपचारिकता बनकर रह गई हैं। बजट की कमी हो या अधिकारियों की इच्छाशक्ति की कमी, नतीजा वन्यजीवों के लिए बेहद घातक साबित हुआ है।
पिछले कुछ वर्षों की प्रमुख घटनाएँ
19 सितंबर 2023: सीतापुर फाटक, हरिद्वार— नर हाथी की ट्रेन से मौत
2021: दो अलग-अलग घटनाओं में दो हाथियों की मौत
27 जुलाई 2020: नकरौंदा में हाथी की मौत
21 नवंबर 2020: हर्रावाला के पास हाथी की मौत
फरवरी 2018: रायवाला में शिशु हाथी ट्रेन से कटकर मरा
19 अप्रैल 2017: ज्वालापुर— दो हाथियों की ट्रेन से कटकर मौत
15 अक्टूबर 2016: रायवाला के वैदिक नगर में नंदा देवी एक्सप्रेस की चपेट में हाथी
20 मार्च 2018: मादा हाथी की ट्रेन से टक्कर में मौत
2001: ट्रेन हादसे में चार हाथियों की मौत
8 मार्च 2021: लच्छीवाला में शिशु हाथी की मौत
27 नवंबर 2021: एक और हाथी की मौत
क्या कहता है वन विभाग?
वन्यजीव प्रतिपालक अजय सिंह के अनुसार,
“हर तीन महीने में रेलवे अधिकारियों के साथ बैठक होती है। ट्रेनों की स्पीड लिमिट और अन्य सुरक्षा बिंदुओं पर चर्चा की जाती है। वनकर्मी लगातार ट्रैक पर पेट्रोलिंग भी करते हैं।”
लेकिन बढ़ते हादसे इन दावों की विश्वसनीयता पर सवाल छोड़ जाते हैं।

