उत्तराखंड में आगामी त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों को लेकर अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) आरक्षण की स्थिति अब पूरी तरह से स्पष्ट हो गई है। राज्य सरकार द्वारा नियुक्त एकल सदस्यीय समर्पित आयोग ने 2011 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर ओबीसी वर्ग को ग्राम पंचायतों में दिए जाने वाले आरक्षण का निर्धारण किया है। आयोग की यह कवायद सामाजिक न्याय और समावेशी लोकतंत्र की दिशा में एक अहम कदम मानी जा रही है।
जनसंख्या के अनुपात में मिला आरक्षण
आयोग ने अपने विश्लेषण में इस बात का विशेष ध्यान रखा कि ओबीसी वर्ग को आरक्षण उन्हीं क्षेत्रों में मिले, जहां उनकी जनसंख्या पर्याप्त है। इसके चलते उत्तरकाशी और ऊधमसिंह नगर जैसे जिलों में ओबीसी समुदाय को सबसे अधिक ग्राम प्रधान पदों पर आरक्षण प्राप्त हुआ है। यह व्यवस्था पूरी तरह से संविधान द्वारा प्रदत्त समानता और सामाजिक प्रतिनिधित्व के सिद्धांतों के अनुरूप है।
आयोग का यह भी कहना है कि इस बार का आरक्षण पूरी तरह से पारदर्शी प्रक्रिया के तहत तय किया गया है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि पंचायत चुनावों में प्रत्येक वर्ग को उनकी आबादी के अनुसार उचित प्रतिनिधित्व मिले। इससे न केवल पंचायत व्यवस्था में सामाजिक विविधता बढ़ेगी, बल्कि सभी वर्गों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर भी मिलेगा।
आरक्षित और अनारक्षित पदों की संख्या
राज्य में इस समय कुल 7499 ग्राम प्रधान पद हैं, जिनमें से विभिन्न वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था इस प्रकार की गई है:
सामान्य वर्ग (अनारक्षित) – 2747 पद
ओबीसी वर्ग – 457 पद
अनुसूचित जाति (SC) – 1380 पद
अनुसूचित जनजाति (ST) – 225 पद
महिला व अन्य श्रेणियां – 2690 पद
इस प्रकार राज्यभर में कुल 4752 पद आरक्षित किए गए हैं, जबकि शेष 2747 पद अनारक्षित रखे गए हैं। महिला आरक्षण को सभी श्रेणियों में लागू किया गया है ताकि पंचायतों में महिलाओं की भागीदारी भी सुनिश्चित हो सके।
अन्य पदों पर भी समान आरक्षण नीति
आयोग ने यह स्पष्ट किया है कि ग्राम प्रधान पदों की ही तरह त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था के अन्य पदों—जैसे ग्राम पंचायत सदस्य, क्षेत्र पंचायत सदस्य, और जिला पंचायत सदस्य—पर भी यही आरक्षण नीति लागू की जाएगी। इसका उद्देश्य हर स्तर पर सामाजिक संतुलन बनाए रखना है।
इस आरक्षण से यह सुनिश्चित होगा कि पंचायतों में निर्णय लेने की प्रक्रिया में सभी वर्गों की आवाज शामिल हो और कोई भी तबका हाशिये पर न रह जाए। इससे स्थानीय स्वशासन व्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी और नीतियों का क्रियान्वयन जमीनी स्तर पर और अधिक प्रभावी ढंग से किया जा सकेगा।
उत्तरकाशी और ऊधमसिंहनगर पर खास नजर
उत्तरकाशी और ऊधमसिंह नगर दो ऐसे जिले हैं जहां ओबीसी वर्ग की जनसंख्या तुलनात्मक रूप से अधिक है। इसी के आधार पर इन जिलों में ओबीसी को सर्वाधिक प्रधान पदों पर आरक्षण मिला है। यह पहली बार है जब इन जिलों में ओबीसी प्रतिनिधियों की संख्या में स्पष्ट बढ़ोतरी देखने को मिलेगी।
यह आरक्षण न केवल सामाजिक दृष्टिकोण से अहम है, बल्कि इससे राजनीतिक भागीदारी का अवसर भी बढ़ेगा। जिन समुदायों की अब तक पंचायत राजनीति में भागीदारी सीमित रही है, वे अब नेतृत्व की मुख्यधारा में शामिल हो सकेंगे।
पारदर्शिता और विवादरहित प्रक्रिया का दावा
राज्य चुनाव आयोग और एकल सदस्यीय आयोग ने यह दावा किया है कि आरक्षण निर्धारण की यह पूरी प्रक्रिया बिना किसी पक्षपात और पूरी पारदर्शिता के साथ पूरी की गई है। किसी भी आरक्षण निर्धारण में स्थानीय जनसंख्या आंकड़ों, भौगोलिक परिस्थितियों और पूर्व वर्षों की स्थिति का सूक्ष्मता से अध्ययन किया गया है।
यदि किसी ग्राम पंचायत में ओबीसी की जनसंख्या नगण्य पाई गई, तो वहां उन्हें आरक्षण नहीं दिया गया। वहीं, जिन ग्राम पंचायतों में ओबीसी जनसंख्या की भागीदारी 15 प्रतिशत से अधिक रही, वहां उन्हें वरीयता दी गई।
निष्कर्ष
उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों की तैयारियां अब अंतिम चरण में हैं। ओबीसी आरक्षण की स्थिति स्पष्ट होने से अब नामांकन प्रक्रिया और चुनावी तैयारियों को गति मिलेगी। राज्य में सामाजिक न्याय की दिशा में यह एक बड़ा कदम माना जा रहा है, जिससे निचले स्तर तक लोकतंत्र की जड़ें और मजबूत होंगी।
यह आरक्षण व्यवस्था आने वाले समय में पंचायतों के स्वरूप को न केवल अधिक प्रतिनिधित्वपूर्ण बनाएगी, बल्कि लोक
तांत्रिक सहभागिता के नए आयाम भी स्थापित करेगी।