Dehradun : उत्तराखंड में लगातार बढ़ते ध्वनि प्रदूषण को देखते हुए राज्य परिवहन विभाग ने एक बड़ा और ठोस कदम उठाया है। अब जो वाहन निर्धारित सीमा से अधिक शोर उत्पन्न करेंगे, उनके खिलाफ सख्ती से कार्रवाई की जाएगी। इस दिशा में काम को और प्रभावी बनाने के लिए विभाग ने अत्याधुनिक उपकरणों की सहायता लेने का निर्णय लिया है।

 

47 डेसीबल मीटर खरीदे गए

 

परिवहन विभाग ने हाल ही में 47 आधुनिक डेसीबल मीटर खरीदे हैं। ये उपकरण विशेष रूप से वाहनों की ध्वनि तीव्रता को मापने के लिए बनाए गए हैं। अब इन मीटरों को प्रवर्तन दस्तों को सौंपा जा रहा है, जिससे सड़कों पर शोर करने वाले वाहनों की पहचान आसान हो सकेगी और उनके खिलाफ सटीक और ठोस कार्रवाई की जा सकेगी।

 

विभाग का कहना है कि पहले अधिकारियों को केवल अनुमान के आधार पर शोर का आकलन करना पड़ता था, जिससे कई बार नियम तोड़ने वाले बच निकलते थे। लेकिन अब इन वैज्ञानिक उपकरणों के जरिए यह मुमकिन नहीं होगा।

 

परिवहन मुख्यालय में सफल परीक्षण

 

इन डेसीबल मीटरों का परीक्षण परिवहन मुख्यालय में पहले ही सफलतापूर्वक किया जा चुका है। अधिकारियों के मुताबिक, अब इन उपकरणों के उपयोग से कार्यवाही ज्यादा पारदर्शी और सटीक होगी। इससे यह सुनिश्चित होगा कि बेवजह किसी वाहन मालिक को परेशान न किया जाए, और नियम तोड़ने वाले को बख्शा भी न जाए।

 

कानूनी प्रावधान और सजा

 

मौजूदा मोटर वाहन अधिनियम के तहत अगर कोई वाहन तय मानकों से अधिक ध्वनि करता पाया जाता है तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जा सकती है। इसमें ₹10,000 तक का जुर्माना, तीन महीने के लिए ड्राइविंग लाइसेंस का निलंबन, और जरूरत पड़ने पर तीन महीने तक की जेल की सजा भी शामिल है।

 

युवाओं की लापरवाही बन रही है परेशानी का कारण

 

विशेषज्ञों का मानना है कि शहरी क्षेत्रों में ध्वनि प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह युवाओं द्वारा अपने वाहनों में बदलाव कराना है। वे अपने दोपहिया वाहनों में मॉडिफाइड साइलेंसर, तेज आवाज वाले हार्न, और साउंड सिस्टम लगवा रहे हैं, जिससे उनके वाहन तेज धमाकों या गोलियों जैसी आवाजें निकालते हैं।

 

इससे न केवल ट्रैफिक में अव्यवस्था फैलती है, बल्कि बच्चों, बुजुर्गों और मरीजों को भी गंभीर असुविधा होती है। कई बार ऐसे वाहन स्कूल, अस्पताल और शांत क्षेत्रों के आसपास भी तेज आवाजें करते हैं, जो बेहद खतरनाक है।

 

ध्वनि स्तर के मानक

 

वाहनों के लिए सरकार ने ध्वनि स्तर की सीमा तय कर रखी है, जो इस प्रकार है:

 

दोपहिया और तिपहिया वाहन – अधिकतम 80 डेसीबल

 

कारें – अधिकतम 82 डेसीबल

 

चार मीट्रिक टन तक के वाणिज्यिक वाहन – अधिकतम 85 डेसीबल

 

चार टन से अधिक वजन वाले भारी वाहन – अधिकतम 91 डेसीबल

 

 

यदि कोई वाहन इन सीमाओं से अधिक ध्वनि करता है तो उसे गैरकानूनी माना जाएगा।

 

पारदर्शिता और प्रभावशीलता बढ़ेगी

 

सहायक परिवहन आयुक्त शैलेश तिवारी ने जानकारी दी कि इन उपकरणों से कार्यवाही में गंभीरता और पारदर्शिता आएगी। पहले केवल मैनुअल जांच होती थी, लेकिन अब मशीन आधारित सटीक मापन होगा, जिससे गलत कार्रवाई की गुंजाइश खत्म हो जाएगी।

 

विभाग का यह भी कहना है कि जल्द ही दूसरे चरण में और भी डेसीबल मीटर खरीदे जाएंगे, जिससे पूरे राज्य में निगरानी व्यवस्था और सुदृढ़ की जा सके।

 

लोगों से भी सहयोग की अपील

 

परिवहन विभाग ने आम जनता से भी सहयोग की अपील की है। विभाग चाहता है कि वाहन मालिक अपने वाहनों में अनधिकृत मॉडिफिकेशन न कराएं और साइलेंसर या हार्न जैसे उपकरणों को सरकार द्वारा अनुमोदित मानकों के अनुसार ही लगवाएं।

 

साथ ही, अगर कोई व्यक्ति अत्यधिक शोर करने वाले वाहन को देखता है तो वह इसकी सूचना ट्रैफिक हेल्पलाइन या नजदीकी परिवहन अधिकारी को दे सकता है। इससे ऐसे वाहनों के खिलाफ जल्द से जल्द कार्रवाई हो सकेगी।

 

 

 

निष्कर्ष

 

उत्तराखंड सरकार का यह कदम न सिर्फ सड़कों पर शांति बहाल करेगा, बल्कि लोगों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को भी लाभ पहुंचाएगा। आधुनिक तकनीक के साथ अब कानून का पालन कराना अधिक आसान हो गया है। आने वाले समय में यदि यह योजना सही दिशा में आगे बढ़ती है, तो उत्तराखंड अन्य राज्यों के लिए ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण का एक आदर्श मॉडल बन सकता है।

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