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palayan in uttarakhand : उत्तराखंड राज्य के लिए इस वक्त अगर कोई चीज सबसे बड़ी चिंता का विषय बनी हुई है तो वह है पलायन, पलायन ( palayan in uttarakhand ) एक ऐसी समस्या है जो उत्तराखंड के वर्तमान और भविष्य के लिए सबसे बड़ा खतरा है पलायन के कारण राज्य में सैकड़ों गांव वीरान होते जा रहे हैं जो व्यक्ति एक बार गांव से बाहर निकल जाता है वह फिर गांव वापस आने की भी नहीं सोचता और यह उत्तराखंड के लिए एक बहुत बड़ी समस्या है इसलिए आज हम आपको बताएंगे कि पलायन ( palayan in uttarakhand ) की समस्या क्यों लगातार बढ़ती जा रही है पलायन को लेकर सरकार के आंकड़े क्या कहते हैं और इसे रोकने के लिए क्या संभावित्त उपाय हो सकते है।

कितने गॉव हुए पलायन के शिकार ( report on palayan in uttarakhand )

चलिये शुरुआत करते सरकारी आंकड़ों से। बात है साल 2017 की बीजेपी सरकार बहुमत के साथ सत्ता में आई तो पलायन की समस्या को देखते हुए उनके द्वारा पलायन आयोग ( palayan aayog ) का गठन किया गया साल 2018 में पलायन आयोग ने अपनी पहली रिपोर्ट पेश की और इस रिपोर्ट में जो बातें सामने आई वह चौका देने वाली थी पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में 1700 गांव ऐसे हैं जो बिल्कुल भुतहा हो चुके हैं जहां न बोलने वाला है ना कोई सुनने वाला,कुछ मकान खंडहर हो चुके हैं तो कुछ खंडहर होने की राह पर है जिन आनगनों में कभी बच्चों की किलकारियां गूंजा करती थी,जहां बड़े बुजुर्ग बैठकर बातचीत किया करते थे वह आंगन अब सूने पड़े हुए हैं। जिन गांव के मंदिरों में हर त्यौहार में पूजा हुआ करती थी जहां देवी देवताओं के लिए सभी ग्रामीण भेंट लेकर जाते थे आज वह मंदिर और वहां रहने वाले देवता भी अकेले रह गए।

रिपोर्ट में बताया गया है कि पलायन ( palayan in uttarakhand ) के कारण करीब 3200000 लोग अपना घर छोड़कर शहरों की ओर निकल गए हैं जबकि 1000 गांव ऐसे हैं जहां रहने वाले लोगों की संख्या 100 से भी कम है. अगर रिपोर्ट की माने तो कुल 3900 गांव ऐसे हैं जो पलायन के कारण सबसे अधिक प्रभावित हैं। पलायन आयोग अभी भी जिलेवार पलायन से हुए नुकसान को लेकर रिपोर्ट तैयार कर रहा है जब यह रिपोर्ट आएगी तो इससे और स्पष्ट आंकड़े सामने आएंगे।

राज्य का भूगोल बदल देगा पलायन

यह पलायन राज्य ( palayan in uttarakhand ) के लिए कितना बड़ा खतरा बन रहा है इसे आप इंटीग्रेटेड माउंटेन इनीशिएटिव नाम के एक संगठन की ओर से जारी एक रिपोर्ट जिसका नाम स्टेट ऑफ द हिमालय फार्मर एंड फार्मिंग रिपोर्ट है उससे समझ सकते है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि जिस तेजी से उत्तराखंड राज्य में पलायन ( palayan in uttarakhand ) हो रहा है उससे आने वाले समय में राज्य का भूगोल ही बदल जाएगा और जो राज्य में विधानसभा और लोकसभा सीटें हैं उनका दायरा फिर से नए सिरे से निर्धारित करना पड़ेगा।

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क्या है पलायन का कारण

अगर पलायन आयोग की रिपोर्ट की माने तो उत्तराखंड में पलायन ( palayan in uttarakhand ) का सबसे बड़ा कारण स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव, अच्छी शिक्षा का न मिल पाना और रोजगार प्रमुख कारण है. अगर आप भी किसी पलायन किए हुए व्यक्ति से बातचीत करने की कोशिश करेंगे और से जानने की कोशिश करेंगे कि उसने उत्तराखंड क्यों छोड़ा तो उनका पहला जो जवाब आता है वह रोजगार होता है और उसके बाद अभी के समय पर हर कोई मां-बाप चाहता है कि उसके बच्चों को अच्छी शिक्षा मुहैया हो सके. क्योंकि राज्य में सरकारी स्कूल उच्च स्तर की शिक्षा नहीं प्रदान कर पाते हैं, जो अभी के समय के लिए जरूरी है. इसलिए मां बाप अपने बच्चों को लेकर गांव छोड़ते हैं और उसके बाद फिर वही बस जाते हैं।

क्लाइमेट चेंज भी पलायन का बड़ा कारण

पलायन ( palayan in uttarakhand ) का एक कारण क्लाइमेट चेंज भी बनकर उभरा है। हाल में जर्मनी बेस्ड पोट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट रिसर्च (पीआईके) और द एनर्जी एन्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टेरी), नई दिल्ली की ओर से की गई एक स्टडी ‘’लॉक्ड हाउसेज, फैलो लैंड्स: क्लाइमेट चेंज एण्ड माइग्रेशन इन उत्तराखंड, इंडिया’’ नामक एक रिपोर्ट में ये बात सामने आई है कि 2021 से 2050 तक अवेरफे मैक्सिमम टेंप्रेचर 1.6 से 1.9 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा। राज्य में टेम्परेचर बढ़ने में ग्लेशियर बर्स्ट से कई अलग अलग समस्याएं सामने आ रही है जिसके कारण लोगों की आजीविका पर असर पड़ रहा है जिस वजह से लोग पलायन को मजबूर हो रहे हैं ।यह तो हुए पलायन (reasons of palayan in uttarakhand ) के कुछ कारण चलिए अब जानते हैं सरकार के द्वारा पलायन को रोकने के लिए क्या योजनाएं चलाई गई और उसका कितना लाभ हुआ।

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सरकार की योजनाएं

जैसे की हम सभी जानते हैं राज्य में रोजगार सबसे बड़ा कारण है जिस वजह से राज्य वासी बाहरी राज्यों में प्रवासी की जिंदगी जीते हैं. उत्तराखंड के युवाओं को रोजगार देने के लिए राज्य गठन के बाद औद्योगिक विकास मॉडल को अपनाया गया। साल 2003 में में सरकार के द्वारा औद्योगिक प्रोत्साहन पैकेज जारी किया गया जिसके बाद राज्य में औद्योगिक गतिविधियां तेजी से आगे बढ़ने लगी ।।जहां साल 2000 में राज्य बनने तक उत्तराखंड में कुल 14163 एमएसएमई यानी कि लघु एवं सूक्ष्म उद्योग और 46 बड़े उद्योग थे वही 21 साल बाद यानी कि साल 2021 तक इनकी संख्या 49000 से अधिक पहुंच चुकी है राज्य में उद्योग क्षेत्र की जीडीपी में भागीदारी 49% हो चुकी है जो राज्य बनते वक्त 19% पर थी। लेकिन इस मॉडल की सबसे बड़ी खामी यह रही कि यह शहरी क्षेत्रों या तराई के क्षेत्रों तक ही सीमित रहा यह औद्योगिक विकास मॉडल ग्रामीण इलाकों तक नहीं पहुंच पाया जिस वजह से इसका पलायन ( palayan in uttarakhand ) पर कुछ खास फर्क नहीं पड़ा।

जब साल 2020 में कोरोना की पहली लहराई तो सभी प्रवासी अपने गांव को लौटे और लगने लगा कि अब गांव गुलजार हो जाएंगे। जो गांव की रौनक जो गांव की आत्मा मरने के कगार पर थी, वह फिर से जीवंत होने लगी थी. लेकिन यह दुर्भाग्य रहा की यह खुशियां,ये रौनक ज्यादा दिन तक नहीं चल पाई. जैसे ही सरकार के द्वारा लॉकडाउन हटाने का फैसला लिया गया तो धीरे-धीरे ग्रामीणों के द्वारा गांव छोड़कर शहरों की ओर रुख करना शुरू कर दिया गया. लोग रोजगार के कारण फिर से दूसरे राज्यों की ओर जाने लगे और उत्तराखंड के गांव फिर से वीरान हो गए। हालांकि इस दौरान भी सरकार के द्वारा कुछ योजनाएं लाई गई ग्रामीणों को स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहित किया गया, लेकिन ये योजनाएं भी कोई काम नहीं कर पाई।

कोरोनावायरस की प्रथम लहर के दौरान ही 11 सितंबर 2020 को उत्तराखंड की तत्कालीन त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के द्वारा मुख्यमंत्री पलायन रोकथाम योजना लांच की गई और इसके बारे में दिशानिर्देश जारी किए गए. इस योजना का लक्ष्य 50% पलायन ( palayan in uttarakhand ) प्रभावित गांव में आवासीय परिवारों बेरोजगार युवाओं को स्वरोजगार उपलब्ध कराना था. इसको लेकर इस योजना के प्रथम चरण में यानी कि साल 2020-2021 में कुल 18 करोड़ की धनराशि भी स्वीकृत की गई. हालांकि इस योजना से हुए लाभ को लेकर कोई ठीक-ठीक आंकड़े उपलब्ध नहीं है, लेकिन अगर आप वर्तमान की स्थिति देखेंगे और गांव में जाकर अंदाजा लगाने की कोशिश करेंगे तो आपको समझ आएगा कि इस योजना का भी कोई खासा असर नहीं हुआ है।

हमारे लिए ये सोचने की बात है कि क्यों दिन प्रति दिन हमारे गाँव खाली होते जा रहे है। क्यों हमारे पहाड़ के लोगों को अपने घरों को वीरान छोड़कर जाना पड़ रहा है, क्यों सरकारों की योजनाएं भी ग्रामीणों को गांव में नहीं रोक पा रही है, क्यों उत्तराखंड का आदमी अपने राज्य को छोड़कर दूसरे राज्य में प्रवासी बनने को मजबूर है. ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जिनके जवाब हमारे पास होने के बावजूद भी हमारी सरकारें इसे समस्या समझ कर इसके लिए ठोस कदम नहीं उठा पा रही है। आप कुछ थोड़ी छोटी मोटी योजनाएं लागू करके सोचेंगे कि पलायन ( palayan in uttarakhand ) रुक जाएगा तो ऐसा नही होने जा रहा है। आप पलायन को जिनती छोटी समस्या मान रहे है ये उससे कई गुना अधिक बड़ी समस्या है। और यहां में किसी एक सरकार की बात नही कर रहा हैं, यहां में उत्तराखंड की अब तक कि सभी सरकारों की बात कर रहा हूँ। बहरहाल चलिये जानते है कि कुछ वी ठोस कदम हो सकते है जिन्हें उठाकर राज्य में पलायन ( palayan in uttarakhand ) को रोका जा सकता है।

पलायन ( palayan in uttarakhand ) को सबसे पहले एक गंभीर समस्या मानकर काम करना होगा। इसके प्रत्येक कारण पर बारीकी से काम करना होगा। राज्य में नए स्कूल खोलने से ज्यादा जो स्कूल पहले से है उनमें शिक्षा के स्तर को सुधारने पर ध्यान देना होगा। स्कूल में शिक्षकों की भर्तियां करानी होंगी। शिक्षा के स्तर में भी बदलाव लाना होगा। राज्य में रोजगार के अवसर पैदा करने होंगें। जो भी औद्योगिक गतिविधियां में उन्हें गावों के करीब लाना होगा। ग्रामीणों को ये विश्वास दिलाना होगा की आप शहर से ज्यादा गाँव में रहकर कमा सकते है उन्हें स्वरोजगार से जोड़ना होगा। स्वरोजगार के साथ साथ गांवों में ही रोजगार के नए अवसर पैदा करने होंगें। तब जाकर कहि इस पलायन ( palayan in uttarakhand ) को काम किया जा सकता है.

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