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Uttarakhand day: हम सभी का प्यारा उत्तराखंड आज 21 साल का हो गया है। सबसे पहले सभी राज्य वासियों को उत्तराखंड स्थापना दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। आज राज्य स्थापना दिवस के मौके पर हम आपको बताएंगे कि इन 21 सालों में उत्तराखंड की क्या उपलब्धियां (archivements of Uttarakhand ) रही और क्या-क्या वह नाकामियां रही जिनपर काम नही हो पाया।

उत्तराखंड बनने के बाद कितना बदला उत्तराखंड (archivements of Uttarakhand )

शुरुआत करते है कुछ बड़ी उपलब्धियों से.राज्य बनने से पहले बुनियादी सुविधाओं से दूर उत्तराखंड के लिए ये 21 साल (21 years of Uttarakhand ) मीले जुले ही रहे। जहां राज्य बनते वक़्त राज्य में गावों तक सड़कें भी नही पहुंच पाई थी अब राज्य में ऑल वेदर रोड का निर्माण हो रहा है और यह निर्माण कार्य 65 फ़ीसदी पूरा भी हो चुका है गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी के रूप में घोषित कर दिया गया है और बुनियादी ढांचे का निर्माण भी जारी है हालांकि अभी भी कई लोग गैरसैंण को पूर्ण कालीन राजधानी घोषित करने की मांग कर रहे हैं।

इसके बाद जो सरकारों की तीसरी उपलब्धि थी वह एयर कनेक्टिविटी से जुड़ी हुई है आज उत्तराखंड ( Uttarakhand ) में एयर कनेक्टिविटी को बड़ी तेजी से विकसित किया जा रहा है राजधानी देहरादून से 11 शहरों के लिए सीधी हवाई सेवा की शुरुआत हो चुकी है,जिससे यात्रियों को बेहद सहूलियत मिल रही है।

कोरोनावायरस महामारी का भी राज्य ने डटकर सामना किया है और यह कारण है कि इस वक्त उत्तराखंड में सभी लोगों को कोरोना वैक्सीन की पहली डोज (100% corona vaccination in uttarakhand ) लगाई जा चुकी है जो कि एक बड़ी उपलब्धि है।

उत्तराखंड राज्य में नगर निगम और शहरी निकायों की संख्या भी बढ़ रही है राज्य स्थापना को 21 साल होने तक राज्य में शहरी निकायों की संख्या 100 हो चुकी है तो वहीं नगर निगम भी बढ़कर 8 हो चुके हैं। हालांकि इसे कहीं लोग उपलब्धि मानने से इनकार भी करते हैं उनका कहना है कि उत्तराखंड की आत्मा गांवों में बसती है और सरकार को शहरी निकायों या नगर निगम से अधिक ध्यान ग्रामीण इलाकों पर केंद्रित करना चाहिए। बांकी आपपर है आप इसे उपलब्धि मानते है या दुविधा।

बात करते है अगली उपलब्धि की। जहां एक वक्त उत्तराखंड टेलीफोन सुविधा भी बड़ी मुश्किल से उपलब्ध होती थी अब वही उत्तराखंड पूर्ण रूप से डिजिटल (digital uttarakhand ) हो चुका है।इस वक़्त राज्य में सभी कार्य लगभग ऑनलाइन किए जा रहे हैं और सहूलियत सुरक्षा के हिसाब से यह एक बड़ी उपलब्धि है.

उत्तराखंड राज्य आपदा (uttarakhand disaster ) की दृष्टि से भी काफी संवेदनशील राज्य हैं और समय-समय पर हमने इसके उदाहरण भी देखे हैं कई बड़ी आपदाओं से राज्य को दो चार होना पड़ता है इसलिए राज्य में विशेषज्ञ बाल एसडीआरएफ के गठन की सख्त जरूरत है और इस जरूरत को भी साल 2014 में पूरा कर लिया गया जो राज्य में आने वाली आपदाओं के वक्त राहत बचाव कार्यों में बेहद सहायक होता है। राज्य में ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल लाइन का भी काम बड़ी तेजी से हो रहा है और राज्य में कैंसर हॉस्पिटल खोलने की भी बात हो रही है।

ये थी राज्य की कुछ उपलब्धियां है। चलिये अब बात करते है नाकामियों की

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कहा नाकाम हुआ उत्तराखंड (problems in Uttarakhand )

राज्य बनने से पहले से लेकर अभी तक राज्य की जो सबसे बड़ी समस्या रही है वह पलायन रही है और दुर्भाग्य की बात यह है की राज्य बनने के बाद भी पलायन का ग्राफ नीचे नहीं गया बल्कि और अधिक तेजी से ऊपर चढ़ा है इस वक्त 1700 गांव ऐसे हैं जहां कोई रहने वाला नहीं है यह हमारा दुर्भाग्य ही है की पलायन की समस्या दिन प्रतिदिन गंभीर होती जा रही है और सरकारों के कार्यों की लिस्ट में वह नीचे दबती जा रही है, पार्टियां लाख दावे करे लेकिन कोई भी पार्टी ऐसी नहीं है जिसने अभी तक पलायन को एक गंभीर समस्या मानकर काम किया हो।

पलायन के बाद बेरोजगारी दूसरी सबसे बड़ी समस्या (problems in Uttarakhand ) उत्तराखंड के सामने खड़ी है। जिस रोजगार के लिए इतना बड़ा उत्तराखंड राज्य आंदोलन खड़ा हो गया हमारे राज्य आंदोलनकारियों ने गोलियां तक खाली और उत्तर प्रदेश से राज्य को अलग भी करा लिया उत्तराखंड आज भी रोजगार के लिए जद्दोजहद करने के लिए मजबूर है राज्य में समय पर भर्तियां नहीं हो रही है जिससे राज्य का युवा वर्ग लगातार बेरोजगारी के दलदल में फंसता जा रहा है।

रोजगार के बाद शिक्षा का क्षेत्र ऐसा है जहां अभी भी बहुत काम करने की जरूरत है राज्य में इस वक्त माध्यमिक स्कूलों में 5000 से भी ज्यादा स्थाई शिक्षकों की कमी है राज्य में आंकड़े दिखाने के लिए स्कूल तो खोल दिए जाते हैं लेकिन अगर वहां शिक्षक ही नहीं हैं तो उन स्कूलों का क्या फायदा और अगर शिक्षक ही नहीं है तो हम राज्य तो हम राज्य को शिक्षा के क्षेत्र में कैसे उन्नत बनाएंगे इसलिए सरकार को शिक्षा के क्षेत्र में भी गम्भीरता से काम करने की जरूरत है।

स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी उत्तराखंड (health problems in Uttarakhand ) कई राज्यों से बेहद पीछे हैं कई गांव में सड़क न पहुंच पाने के कारण अभी भी समय पर मरीजों को इलाज उपलब्ध नहीं हो पाता है राज्य के सभी अस्पतालों में डॉक्टरों की तैनाती भी पूर्ण रूप से नहीं हो पाई है इस वक्त राज्य के अस्पतालों में डॉक्टरों की तैनाती 25 फ़ीसदी कम है इसके साथ ही अस्पतालों में मरीजों को उचित सुविधा भी नहीं मिल पाती है।

इसके साथ ही आपदाओं से निपटने के लिए भी अभी तक कोई ठोस नीति नहीं बन पाई है पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि और बागवानी नहीं बन पाना भी एक बड़ी समस्या है शहरों में आवास हीन परिवारों की संख्या भी एक लाख के पार है उत्तराखंड ( Uttarakhand )राज्य में राज्य वासियों की भूमि पर लगातार बाहरी राज्यों के लोगों की दिलचस्पी बढ़ रही है और उनका स्वामित्व भी बढ़ रहा है इसलिये राज्य के युवा भू कानून की मांग भी कर रहे हैं।

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उत्तराखंड की अस्थिर राजनीति और 10 मुख्यमंत्री (uttarakhand cm )

उत्तराखंड के लिए एक बड़ी समस्या उत्तराखंड की अस्थिर राजनीति ( Uttarakhand politics ) भी रही है। उत्तराखंड में राजनीतिक अस्थिरता कितनी है इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं, कि 21 साल के इतिहास में राज्य को 10 मुख्यमंत्री मिल चुके हैं। जब राज्य उत्तर प्रदेश से अलग हुआ तो उत्तराखंड के पहले मुख्यमंत्री (first cm of Uttarakhand ) नित्यानंद स्वामी बने। लेकिन वह ज्यादा समय तक सत्ता पर काबिज नहीं रह सके। लगभग 354 दिन उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बने रहने के बाद 1 मार्च 2002 को भारतीय जनता पार्टी के ही भगत सिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री बना दिया गया। कोशियारी भी ज्यादा समय तक कुर्सी नहीं बचा पाए।

जब 2002 में विधानसभा चुनाव हुए तो कांग्रेस की जीत हुई और नारायण दत्त तिवारी राज्य के मुख्यमंत्री बने। नारायण दत्त तिवारी अकेले ऐसे मुख्यमंत्री रहे जिन्होंने 5 साल का कार्यकाल पूरा किया। इसके बाद 2007 में विधानसभा चुनाव हुए और कांग्रेस को सत्ता गवानी पड़ी, बीजेपी को जीत मिली और भुवन चंद खंडूरी उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री बने। लेकिन खंडूरी के मुख्यमंत्री बनते ही बीजेपी में अंदर खाने लड़ाइयां शुरू हो गई, जिस वजह से 2 साल से अधिक उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बने रहने के बाद उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ी और 27 जून 2009 को रमेश पोखरियाल निशंक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बन गए। लेकिन फिर जैसे ही चुनाव नजदीक आए तो खंडूरी को फिर से मुख्यमंत्री बना दिया गया और वह अपने दूसरे कार्यकाल में 11 सितंबर 2011 से लेकर 13 मार्च 2012 तक के लिए मुख्यमंत्री बने रहे।

लेकिन चुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्री बदलने की बीजेपी की है कोशिश भी उसे हार से नहीं बचा पाई। 2012 में विधानसभा चुनाव हुए तो फिर से कांग्रेस को जीत हासिल हुई और विजय बहुगुणा कांग्रेस के मुख्यमंत्री बने, लेकिन फिर हमें यहां राजनीतिक लड़ाइयां देखने को मिली हरीश रावत गुट और बहुगुणा गुट आमने-सामने आ गए और विजय बहुगुणा 2 साल भी उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में पूरे नहीं कर पाए और उन्हें अपनी कुर्सी हरीश रावत को सौंपने पड़ी। हरीश रावत के समय में भी सत्ता परिवर्तन की कोशिशें हुई, दल बदल हुए, कई बड़े कांग्रेस के नेता बीजेपी में शामिल हुए, लेकिन जैसे तैसे हरीश रावत ने अपनी कुर्सी तो बचा ली लेकिन कांग्रेस को टूटने से नहीं बचा पाए और इसका खामियाजा उन्हें चुनाव में भी भुगतना पड़ा। जहां मोदी लहर में बीजेपी को उत्तराखंड ( uttarakhand bjp ) में प्रचंड बहुमत मिला तो वही हरीश रावत दोनों सीटों पर चुनाव हार गए।

जब 2017 के चुनाव में बीजेपी को जीत मिली तो त्रिवेंद्र सिंह रावत को उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनाया गया। अब क्योंकि बीजेपी को इतना बड़ा बहुमत मिला था तो लग रहा था कि त्रिवेंद्र सिंह रावत 5 साल का कार्यकाल पूरा करेंगे, लेकिन एकाएक बीजेपी में भी मुख्यमंत्री बदलने का घटनाक्रम शुरू हो गया। 18 मार्च 2017 को मुख्यमंत्री बने त्रिवेंद्र सिंह रावत 3 साल 357 दिन तक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे और 10 मार्च 2021 को उन्हें अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी। इसके बाद 10 मार्च 2021 को तीरथ सिंह रावत को उत्तराखंड का नया मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन तीरथ सिंह रावत भी ज्यादा दिन तक सत्ता पर काबिज नहीं रह पाए और मात्र 116 दिन तक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे। जिसके बाद उन्हें भी अपनी कुर्सी पुष्कर सिंह धामी को सौपनी पड़ी।

यह अस्थिर राजनीति ना सिर्फ उत्तराखंड की राजनीतिक पार्टियों के लिए सिरदर्द बनी हुई है, बल्कि राज्य के लोगों के लिए भी एक बड़ा सिरदर्द बनी हुई है। जब एक मुख्यमंत्री परिवर्तित होता है तो उसके पीछे कई चीजें परिवर्तित होती हैं। कई अधिकारियों के तबादले होते हैं, कई योजनाएं ठंडे बस्ते में चली जाती हैं। जिससे अंत में जनता को नुकसान होता है। पॉलिटिकल पार्टियों का अधिक समय इस बात में ही चला जाता है कि हम काम करें या अपनी सरकार बचाएं। दलबदल और खरीद-फरोख्त की राजनीति भी उत्तराखंड में जमकर होती है जिसमें राज्य का बहुत पैसा बर्बाद होता है। इसलिए अगर राज्य को आगे बढ़ाना है तो पार्टियों को भी स्थिरता लानी होगी तभी राज्य आगे बढ़ पाएगा।

तो यह थी 21 सालों के उत्तराखंड राज्य (uttarakhand state ) की कुछ उपलब्धियां और नाकामियां। बाकी आपको क्या लगता है क्या राज्य बनने के बाद हमारी सरकारें उत्तराखंड ( uttarakhand government ) को वह राज्य बना पाई जिसकी कल्पना हमारे राज्य आंदोलनकारियों ने की थी। आप हमें कमेंट करके जरूर बताइएगा ।

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